ऐतिहासिक कदम: भारत ने 1960 की इंदुस वॉटर ट्रीटी को स्थायी रूप से किया खत्म, राजस्थान में नया नहर प्रोजेक्ट शुरू
नई दिल्ली: भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक और निर्णायक कदम उठाते हुए पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को स्थायी रूप से समाप्त करने का फैसला किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि अब पाकिस्तान को जाने वाला जल, भारत के राजस्थान जैसे जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में उपयोग किया जाएगा।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी, जिसके अंतर्गत भारत ने 3 पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) पर अधिकार बनाए रखा, जबकि पाकिस्तान को 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल दिया गया। भारत संधि के तहत इन नदियों का सीमित उपयोग ही कर सकता था — जैसे सिंचाई, बिजली उत्पादन आदि।
इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 की अधिसूचना जारी: प्रदेश में लागू हुई आदर्श आचार सहिंता, हरिद्वार जिला शामिल नहीं।
क्यों हुआ संधि का अंत?
गृह मंत्री ने अपने बयान में कहा:
“अब समय आ गया है कि हम अपने संसाधनों का पूरा उपयोग करें। पाकिस्तान बार-बार आतंकवाद को बढ़ावा देता है और हम उससे जल-सहयोग की उम्मीद नहीं कर सकते।”
इस फैसले के पीछे निम्नलिखित कारण बताए जा रहे हैं:
- पाकिस्तान द्वारा बार-बार सीजफायर उल्लंघन और आतंकवाद को समर्थन।
- भारत के सूखाग्रस्त राज्यों में पानी की भारी कमी।
- भारत के संसाधनों का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना।
राजस्थान के लिए नई जल योजना
सरकार ने घोषणा की है कि अब पश्चिमी नदियों के अतिरिक्त जल को राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पहुँचाने के लिए नया नहर प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत कई ज़िलों को पहली बार स्थायी जल आपूर्ति मिल सकेगी।
बढ़ सकता है भारत-पाक तनाव
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से भारत-पाकिस्तान संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है। पाकिस्तान इस संधि को लंबे समय से अपने पक्ष में मानता आया है, और यह निर्णय उनके लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
इसे भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025: प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश के विजाग से किया नेतृत्व, ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ के संदेश के साथ देशभर में योग का उत्साह।
भारत का यह निर्णय राष्ट्रीय हित, जल-सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि अब भारत अपने प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण अधिकार का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है।