3 राज्य, 10 दिन, 20 थाने, 50 वाहन मालिकों से बातचीत के बाद स्क्रैपर नेटवर्क की परतें खुलीं
नई दिल्ली: अगर आपके पास 10 साल पुरानी डीजल या 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ी है और आप उसे लेकर दिल्ली की ओर जा रहे हैं, तो सतर्क हो जाइए। दिल्ली में सक्रिय स्क्रैप गैंग आपकी गाड़ी पर नजर गड़ाए बैठे हैं। ये गैंग प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर चलती फिरती गाड़ियों को गायब कर रहे हैं और फिर उनके इंजन और पार्ट्स को बेचकर लाखों कमा रहे हैं।
कैसे काम करता है स्क्रैपर नेटवर्क?
दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सक्रिय यह गैंग सरकारी अधिकृत स्क्रैपर्स और पुलिस की मिलीभगत से गाड़ियों को उठाता है।
- स्क्रैपर का व्यक्ति एयरपोर्ट या बड़ी पार्किंग में पुरानी गाड़ी की पहचान करता है।
- गाड़ी नंबर देखकर उसकी उम्र का पता किया जाता है।
- अगर गाड़ी 10-15 साल पुरानी है, तो उसे ट्रॉली में लादकर ले जाया जाता है।
- कई मामलों में गाड़ी मालिक को सूचित तक नहीं किया जाता।
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अगर 21 दिनों तक गाड़ी मालिक सामने नहीं आता, तो गाड़ी काट दी जाती है। अगर आता भी है, तो जुर्माना, पार्किंग चार्ज और कागजी कार्रवाई में इतना उलझा दिया जाता है कि 90% लोग गाड़ी छोड़ देते हैं।
गाड़ी उठाने की कीमत और स्क्रैपर की कमाई
- शिकार तलाशने वाले को मिलता है ₹600
- पुलिस को दिए जाते हैं ₹1500
- गाड़ी लाने वाले को मिलते हैं ₹400
- बाइक मालिक को मिलते हैं ₹1500, स्क्रैपर कमाता है ₹10-20 हजार।
- कार मालिक को मिलते हैं ₹16-18 हजार, स्क्रैपर की कमाई ₹35 हजार से ₹1 लाख।
स्क्रैपर 90% गाड़ियां बेहतर हालत में उठाते हैं, इसलिए उनके हर पुर्जे की अलग-अलग कीमत मिलती है। इंजन नंबर मिटाकर खुलेआम इन्हें बेचा जाता है।
3 महीने में 50 हजार इंजन देने को तैयार स्क्रैपर
हरियाणा के सबोली में स्क्रैपर PKN मोटर स्क्रैपर प्राइवेट लिमिटेड से संपर्क करने पर उसके डायरेक्टर संजीव बत्रा ने कहा:
- 3 महीने में 50,000 बाइक इंजन देंगे। पल्सर से एक्टिवा तक 7 हजार में, बुलेट का 10 हजार में। सब चलती गाड़ियों से निकालकर देंगे, इंजन नंबर मिटाकर।
- दिल्ली एयरपोर्ट से एक गाड़ी उठाने का किस्सा बताया- मालिक आया तो 10 हजार की रसीद लेकर, हमने 3 हजार पार्किंग मांगी, झगड़ा हुआ, पुलिस बुलानी पड़ी। थाने को 50 हजार देते हैं ताकि ऐसे झगड़े संभाल सकें।
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क्यों 90% लोग गाड़ी लेने नहीं जाते?
अगर आपकी गाड़ी स्क्रैपर उठा ले जाए, तो यह जटिल प्रक्रिया अपनानी होगी:
- स्क्रैपर का नंबर या पर्चा खोजें।
- ट्रैफिक सर्कल एरिया ऑफिस से स्क्रैपर का पता करें।
- 10 हजार रु. का डिमांड ड्राफ्ट और ₹100 का शपथ पत्र देकर ACP ट्रैफिक ऑफिस में आवेदन दें।
- फिर एनओसी लेकर स्क्रैपर के पास जाना होगा, जो आमतौर पर 70-80 किमी दूर होता है।
- प्रतिदिन ₹1000 के हिसाब से पार्किंग चार्ज देना होगा।
- यदि स्क्रैपर ने MCD या परिवहन विभाग के जरिए गाड़ी उठाई हो, तो उनके ऑफिस के भी चक्कर काटने होंगे।
इन्हीं झंझटों की वजह से अधिकतर लोग अपनी गाड़ी छोड़ देना ही बेहतर समझते हैं।
पुलिस का पक्ष
अजय चौधरी, स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस ट्रैफिक मैनेजमेंट ने कहा:
“प्रदूषण के नाम पर गाड़ियां उठाई जा रही हैं, लेकिन स्क्रैपर को गाड़ी उठाने के बाद मालिक को सूचना देनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो रहा, तो यह गलत है।”
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नियम की आड़ में चल रहा है गैरकानूनी स्क्रैपिंग नेटवर्क
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर हजारों गाड़ियों की लूट चल रही है। इसमें पुलिस, स्क्रैपर और बिचौलियों का गठजोड़ है। लाखों रुपये का यह खेल आम नागरिक की जेब और भावनाओं पर भारी पड़ रहा है।